Manav Dharam Sandesh
लोग प्राय शांति के लिए कहाँ-कहाँ नही जाते मंदिर गुरुद्वारे मस्जिद , तीरथ चार धाम परंतु शांति उन्हे शांति नही मिलती
शांति अपने अंदर है सभी तीरथ अपने अंदर है कैलाश भी अपने अंदर है लेकिन उस शांति को पाने के लिए हमें
सच्चे ज्ञान को जानना पड़ेगा और सच्चा ज्ञान सच्चे सतगुरु ही दे सकते हैं जब बच्चा माँ के गर्भ मैं था तब वह भजन करता था मालिक उसकी रक्षा करते थे उसने भगवान से वादा किया था की मुषे इस अंधकार से बाहर निकालो मैं
तुम्हारा भजन करूँगा लेकिन मा के गर्भ से बाहर आने के बाद वह उस परम ज्ञान को भूल जाता है और रोने लगता है
इसका मतलब यह है की बाहर दुख ही दुख है संसार नश्वर है और उस शांति को पाने के लिए वो कहाँ-कहाँ नही भटकता है केवल सच्चे सतगुरु ही उसे दुखों से बच्चने का उपाय बता सकते हैं परम ज्ञान दे सकते हैं
जिससे वह इस भवसागर से बच कर परम गति को प्राप्त करता है अर्थात गुरुमहाराज वह साधन बताते हैं जिसके माध्यम से वह अपनी आत्मा को प्रमात्मा से जोड़ देता है अर्थात जीवन मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है
गुरु का मतलब है गु मतलब अंधकार और रु मतलब प्रकाश अर्थात गुरुमहाराज जीव की आत्मा को अंधकार से प्रकाश के और ले जाते हैं तभी कहा है पहला जन्म माता-पिता देते हैं और दूसरा जन्म सतगुरु देते हैं इसलिए दूसरा जन्म लेने के बाद मनुष्य द्विज कहलाता है इसलिए हमें आत्मा के ज्ञान के लिए सच्चे सतगुरु के पास जाना चाहिए उनके पास जा के उन्हे दंडवत प्रणाम करके उनको सेवा से प्रसन करके उनसे ज्ञान प्राप्त करना चाहिए तभी हमारा कल्याण होगा तभी हम नरक से बच्चेंगे एक बार राजा परिशित ने देखा की कलियुग बैल को मार रहा है और गाय क्रंदन कर रही है बैल का मतलब है धर्मा ओर गाय का मतलब है पृथ्वी राजा ने जब यह देखा तो वह क्रुध हो गया
कलियुग को मरने के लिए आगे बढ़ा तो कलियुग डर कर कहने लगा राजन् मेरा समय आ चुका है मुषे आप
रहने का स्थान जगह बतायें तो राजा न उसे कहा तुम जहाँ मदिरा का सेवन होता है , वैशासाएँ रहती हो , जहाँ हिंसा आदि होता है वहाँ तुम रहना यह सब सुनने बाद वह कहता है राजन आपने सब तो दे दिया लेकिन कोई अच्छा स्थान भी बतायें तो राजा ने उसे सोने का स्थान दे दिया और यह सुनते वह राजा का मुकुट जो सोने का था वहाँ जाकर बैठ गया और बैठ ते ही राजा को दिमाग़ चकराने लगा और जब वह जा रहा था तो उस ने देखा की एक ऋषि ध्यान मे बैठा है और वह मेरे आने से मुषे नमस्कार भी नही करता है तो उसने एक मारा हुवा साँप ऋषि के गले मे डाल दिया जब राजा वहाँ से चल गया था तो ऋषि के बेटे ने जब यह देखा तो तो वह कृढ़ ओ गया अओर उसने राजा को शाप दे दिया की आज से सातवें तक्षक सर्प राजा को काटेगा जब र्जा ने अपना मुकुट निकाला तो उसे पश्चाताप हुवा कि मैने ये क्या कर दिया है तब प्रजा को चिंता होने लगी इतने महान राजा को साँप कटेगा और वह ज्ञान लिया बिना ही इस संसार से चला जाएगा तब प्रजा को किसने बताया की शुकदेव मुनि बड़े ज्ञानी हैं वे राजा पार्शित को ज्ञान दे सकते हैं तो प्रजा उन के पास गयी लेकिन शुकदेव मुनि ने राजा परिशित को ज्ञान देने से इनकार कर दिया तो सभी चिंतित हो गये इतने में वहाँ नारद मुनि आ गये आयार उनसे चिंता का कारण पूछा तो प्रजा कहने लगी इतने महान राजा को सर्प कटेगा और वह बिना ज्ञान प्राप्त किए बगेर इस संसार से चला जाएगा तो नारद ने कहा में शुकदेव मुनि को मनाऊंगा तब वे शुकदेव मुनि के पास गये और कहने लगे एक अँधा व्यक्ति एक कुएँ के पास से जा रहा और वहीं पर आँख वाला व्यक्ति उसे देख रहा आयार वह अँधा कुएँ में गिर गया और मार गया तो पाप किसे लगेगा तो शुकदेव मुनि कहतें है पाप उस आँख वाले व्यक्ति को लगेगा जो देख रहा है इस प्रकार शुकदेव मुनि बात को समश गये की राजा को आत्माका ज्ञान देना बहुत ज़रूरी है तब शुकदेव मुनि ने राजा परिशित को ज्ञान दे दिया और राजा परीक्षित जीवन मरण के चक्र से बच गया
इस प्रकार हमें अपने मनुष्य शरीर का सदुपयोग करना चाहिए और आत्माके ज्ञान को जानने के लिए सच्चे सतगुरु के पास जाना चाहिए और ज्ञान को जानकर भजन सुमिरन करना चाहिए और कर्म करते हुए भजन करना चाहिए तभी हमारा कल्याण होगा
शांति अपने अंदर है सभी तीरथ अपने अंदर है कैलाश भी अपने अंदर है लेकिन उस शांति को पाने के लिए हमें
सच्चे ज्ञान को जानना पड़ेगा और सच्चा ज्ञान सच्चे सतगुरु ही दे सकते हैं जब बच्चा माँ के गर्भ मैं था तब वह भजन करता था मालिक उसकी रक्षा करते थे उसने भगवान से वादा किया था की मुषे इस अंधकार से बाहर निकालो मैं
तुम्हारा भजन करूँगा लेकिन मा के गर्भ से बाहर आने के बाद वह उस परम ज्ञान को भूल जाता है और रोने लगता है
इसका मतलब यह है की बाहर दुख ही दुख है संसार नश्वर है और उस शांति को पाने के लिए वो कहाँ-कहाँ नही भटकता है केवल सच्चे सतगुरु ही उसे दुखों से बच्चने का उपाय बता सकते हैं परम ज्ञान दे सकते हैं
जिससे वह इस भवसागर से बच कर परम गति को प्राप्त करता है अर्थात गुरुमहाराज वह साधन बताते हैं जिसके माध्यम से वह अपनी आत्मा को प्रमात्मा से जोड़ देता है अर्थात जीवन मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है
गुरु का मतलब है गु मतलब अंधकार और रु मतलब प्रकाश अर्थात गुरुमहाराज जीव की आत्मा को अंधकार से प्रकाश के और ले जाते हैं तभी कहा है पहला जन्म माता-पिता देते हैं और दूसरा जन्म सतगुरु देते हैं इसलिए दूसरा जन्म लेने के बाद मनुष्य द्विज कहलाता है इसलिए हमें आत्मा के ज्ञान के लिए सच्चे सतगुरु के पास जाना चाहिए उनके पास जा के उन्हे दंडवत प्रणाम करके उनको सेवा से प्रसन करके उनसे ज्ञान प्राप्त करना चाहिए तभी हमारा कल्याण होगा तभी हम नरक से बच्चेंगे एक बार राजा परिशित ने देखा की कलियुग बैल को मार रहा है और गाय क्रंदन कर रही है बैल का मतलब है धर्मा ओर गाय का मतलब है पृथ्वी राजा ने जब यह देखा तो वह क्रुध हो गया
कलियुग को मरने के लिए आगे बढ़ा तो कलियुग डर कर कहने लगा राजन् मेरा समय आ चुका है मुषे आप
रहने का स्थान जगह बतायें तो राजा न उसे कहा तुम जहाँ मदिरा का सेवन होता है , वैशासाएँ रहती हो , जहाँ हिंसा आदि होता है वहाँ तुम रहना यह सब सुनने बाद वह कहता है राजन आपने सब तो दे दिया लेकिन कोई अच्छा स्थान भी बतायें तो राजा ने उसे सोने का स्थान दे दिया और यह सुनते वह राजा का मुकुट जो सोने का था वहाँ जाकर बैठ गया और बैठ ते ही राजा को दिमाग़ चकराने लगा और जब वह जा रहा था तो उस ने देखा की एक ऋषि ध्यान मे बैठा है और वह मेरे आने से मुषे नमस्कार भी नही करता है तो उसने एक मारा हुवा साँप ऋषि के गले मे डाल दिया जब राजा वहाँ से चल गया था तो ऋषि के बेटे ने जब यह देखा तो तो वह कृढ़ ओ गया अओर उसने राजा को शाप दे दिया की आज से सातवें तक्षक सर्प राजा को काटेगा जब र्जा ने अपना मुकुट निकाला तो उसे पश्चाताप हुवा कि मैने ये क्या कर दिया है तब प्रजा को चिंता होने लगी इतने महान राजा को साँप कटेगा और वह ज्ञान लिया बिना ही इस संसार से चला जाएगा तब प्रजा को किसने बताया की शुकदेव मुनि बड़े ज्ञानी हैं वे राजा पार्शित को ज्ञान दे सकते हैं तो प्रजा उन के पास गयी लेकिन शुकदेव मुनि ने राजा परिशित को ज्ञान देने से इनकार कर दिया तो सभी चिंतित हो गये इतने में वहाँ नारद मुनि आ गये आयार उनसे चिंता का कारण पूछा तो प्रजा कहने लगी इतने महान राजा को सर्प कटेगा और वह बिना ज्ञान प्राप्त किए बगेर इस संसार से चला जाएगा तो नारद ने कहा में शुकदेव मुनि को मनाऊंगा तब वे शुकदेव मुनि के पास गये और कहने लगे एक अँधा व्यक्ति एक कुएँ के पास से जा रहा और वहीं पर आँख वाला व्यक्ति उसे देख रहा आयार वह अँधा कुएँ में गिर गया और मार गया तो पाप किसे लगेगा तो शुकदेव मुनि कहतें है पाप उस आँख वाले व्यक्ति को लगेगा जो देख रहा है इस प्रकार शुकदेव मुनि बात को समश गये की राजा को आत्माका ज्ञान देना बहुत ज़रूरी है तब शुकदेव मुनि ने राजा परिशित को ज्ञान दे दिया और राजा परीक्षित जीवन मरण के चक्र से बच गया
इस प्रकार हमें अपने मनुष्य शरीर का सदुपयोग करना चाहिए और आत्माके ज्ञान को जानने के लिए सच्चे सतगुरु के पास जाना चाहिए और ज्ञान को जानकर भजन सुमिरन करना चाहिए और कर्म करते हुए भजन करना चाहिए तभी हमारा कल्याण होगा
very nice
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