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Showing posts from April, 2011
महापुरुषों का जन्म मनुष्य को सही मार्ग दिखाने के लिए होता है महापुरुषों का जन्म मनुष्य का जाति से हटकर वह पावन ज्ञान देना है जो सब में समाया हुआ है जल में , तल में , नभ में , आकाश , हाथी , चींटी , गाय , भैंस , घोड़ा , पक्षी सब में समाया हुआ है सच्चा ज्ञानी वह जो सब को एक समान देखता है सब से प्यार करता है , वह सब को बराबर समझता है , और परम प्रभु का निरंतर चिंतन करता रहता है , उसका मन एक बच्चे के समान पावन होता है जिस प्रकार एक बच्चे को देखिए कहीं बिठा दीजिए तो वह एक चिड़िया को देखकर ताली बजाता है , और साँप बिच्छू को भी देखकर खुश होता है और ताली बजता है क्योंकि उससे किसी की दुश्मनी नही है लेकिन जब जब वह बड़ा हो जाता है तो उसके मन में अहम का भाव आजाता है और फिर उसका मन दूषित हो जाता है , लेकिन जिस का मन पवित्र होता है तो वह आत्म ज्ञान के लायक होता है क्योंकि पवित्र मन उस परम ज्ञान को धारण कर सकता है अपित्र मन तो पहले से ही भरा हुआ है , अहंकार . क्रोध , लोभ , मौह इसलिए वह ज्ञान के काबिल नही है ज्ञान के काबिल होने के लिए हमें अपना मन पवित्र करना होगा साई बाबा कहते ह
एक बार एक आदमी एक साधु महाराज के पास गया और कहने लगा आप बहुत ज्ञानी हैं आपने बहुत से शिष्यों का मार्गदर्शन किया है क्या आप मेरा भी मार्गदर्शन करेंगे तो साधु महाराज जी कहते है बताओ तुम्हारी क्या इच्छा है तो वह आदमी कहता है में भगवान का दर्शन करना चाहता हूँ क्या आप करा देंगे तो साधु महाराज जी कहते हैं अवश्य क्रा देंगे तुम कल आना अगले दिन जब वह आदमी साधु महाराज के पास पहुँचा तो साधु महाराज जी कहते हैं चलो हमें आज एक पर्वत पर चढ़ना है तो कहा कि तुम एक थैला लेलो उस पर   पाँच बड़े-बड़े पत्थर भर लो तो उस आदमी ने वैसा ही किया और तब चलने लगे जब थोड़ी चढ़ाई आई तो वह आदमी कहता है महाराज जी थैला बड़ा भारी हो रहा है अगर आप कहें तो क्या में एक पत्थर नीचे गिरा दूं तो साधु महाराज कहते हैं ठीक है तब उसने एक पत्थर गिरा दिया फिर और चढ़ाई आई और फिर दुबारा उसने वैसा ही कहा साधु महाराज जी से की थैला भारी हो रहा है क्या मैं एक पत्थर और गिरा दूं ऐसा करते-करते उसने सारे पत्थर गिरा दिये और वे पर्वत के शिखर पर पहुँच गये तब उसे साधु महाराज समझाने लगे की जब तक तुम्हारे मन में पाँच(क्राम , क्रोध , लोभ , अहंक
वह शक्ति जो सारे संसार धारण किए हुए है वह शक्ति सारे जगत को पावन बनाने वाली है उसी शक्ति का ज्ञान अध्यात्म विद्या कहलाता है उसी शक्ति का ज्ञान राज विद्या कहलाता है उस शक्ति का ज्ञान जानने के लिए हमे सच्चे सतगुरु के पास जाना पढ़ता है उसके लिए हमारा मन पवित्र होना चाहिए जिस प्रकार मैले दर्पण में प्रतिबिंब नही दिख पता है उसी प्रकार से मैले (हृदय) रूपी दर्पण में भी प्रकाश रूपी प्रतिबिंब नही दिखाई पढ़ता है युग परिवर्तन के लिए हमे धरती को नही बदलना है आकाश को नही बदलना है , पानी को नही बदलना है बदलना है तो केवल मानव को बदलना है मानव को बदलने के लिए उसके मन को बदलना है जब मन बदलेगा तभी समाज बदलेगा और फिर देश बदलेगा और पूरा विश्व बदलेगा यही सच्चा युग परिवर्तन है इसके लिए हमे आत्मज्ञान को जानना होगा हमने पंखे बनाने की फेक्ट्री देखी होगी , टीवी बनाने की फेक्ट्री होगी , तेल बनाने की फेक्ट्री देखी होगी पर क्या हमने ऐसी फेक्ट्री देखी है जहाँ मानव बनता हो , सत्संग ही ऐसी जगह जहाँ दानव से मानव बनता है और मानव से महामानव बनता है इसलिए सत्संग सुना करें सत्संग बिना विवेक