स्वामी विवेकानंद
एक बार स्वामी विवेकानंद जी को विदेश जाना पड़ा अपने गुरु महाराज जी के आदेश से
तो जब वे वा पहुँचे तो सभी विदेशी लोगो ने उनका स्वागत किया और यह पूछा की भगवान कृष्ण के पीछे लोग क्यूँ
भागते थे ऐसा क्या उनका प्रभाव था ,
तो अगले दिन स्वामी विवेकानंद ने प्रवचन किया और सबसे पहले यह कहा Dear Brothers & Sisters of America
कहकर संबोधन किया तो उनके यह कहने पर पूरे दस मिनट तक तालियाँ बजती रही
क्यूंकी आज तक किसी भी इंसान आए सब यही कहते थे कि Ladies & Gentleman
तो विदेशी बड़े खुश हुए की भारत देश कितना महान है जहाँ के संत सबको अपना मानते हैं
सबको भाई और बहिन मानते हैं
तब बाद में स्वामी विवेकानंद ने सदभावना का संदेश दिया सबको सत्संग सुनाया
भगवान कृष्ण की लीलायों का वर्णन किया ज्ञान का संदेश दिया मानव धर्म के बारे में बताया की
क्यूँ हमको यह मनुष्य तन मिला है और कैसे हम सच्ची भक्ति करें यह बताया और कैसे अपने आप को जन्म - मरण
के चक्र से बचायें कैसे हम भगवान के दर्शन अपने अंदर करने के लिए आत्मज्ञान को जानने के लिए कहा |,
बाद में उनके प्रवचन सुनकर सभी विदेश मंत्र मुग्ध हो गये ,
बाद में रात को जब विवेकनद जी विश्राम करने गये तो कुछ विदेशियों ने उनको रोते हुए पाया की वह अपने कमरे
में रो रहे हैं जब वह कमरे से बाहर आए तो लोगो ने पूछा आप इतने महान संत हैं
आप भला क्यूँ रो रहे हैं क्या हमसे कोई कमी हुई क्या अगर हुई तो हम पूरा कर देंगे
तो विवेकानंद जी कहने लगे नही ऐसा कुछ नही है दरअसल बात यह की जब में अपना प्रवचन सुना रहा था
तो आप सब यह कह रहे थे किी स्वामी विवेकानंद की जय - स्वामी विवेकानंद की जय तो मुझे बड़ा दुख हुवा की
मैं इस लायक नही आज मैं जो कुछ भी हूँ अपने गुरु महाराज जी (राम कृष्ण परमहंस) की कृपा से हूँ
अगर जयकारा लगाना था तो उनका लगाते मेरे क्यूँ लगाया
मैं तो अपने गुरु महाराज जी के सेवा कर रहा था ,
तो देखो धन्य हैं वो भारत जहाँ राम कृष्ण परमहंस , स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुष पैदा हुए ,
धन्य है वो भारत जहा श्री सतगुरुदेव श्री सतपाल जी महाराज पैदा हुए ,
मालिक के चरण कमलों मैं मेरा कोटि-कोटि प्रणाम |
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