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Manav Utthan Sewa Samiti

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जिस प्रकार लोग माया मौह , धन-दौलत के लिए भागते हैं तो वे उसमे दुख-ही-दुख भोगते हैं इसलिए भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं जो अंत काल सुमिरन ध्यान करते हुए प्राण छोड़ता है वह मुझे प्राप्त होता है इसमें कोई संशय नही है और जो माया का चिंतन करते हुए त्याग करता है वह चौरासी योनियों में ही भटकता ही रहता है और दुख भोगता है तो क्यों ना हम जवानी से ही भजन करें तभी तो अंत कल में प्रभु का ही ध्यान आएगा और प्रभु के श्री चारों में हम समा जाएँगे बहुत से लोग कहते हैं जवानी में तो मौज-मस्ती कर लेंगे और बुढ़ापे में भजन कर लेंगे चिंतन कर लेंगे ज़रा विचार कीजिए जिस इंसान ने जीवन-पर्यंत तो भजन किया नही तो वो बुढ़ापे में भजन कैसे कर पाएगा तब तक उसकी कमर भी झुक जाएगी आँखे भी देखना बंद कर देंगी कान भी सुनना बंद कर देंगे तो वो भजन कैसे करेगा उसे अंत काल में प्रभु का ध्यान कैसे आएगा वो तो माया के ही बारे में सोचेगा तो वो नरक ही जाएगा कई बार हम देखते हैं कई बूढ़े लोग गंगा किनारे माला जपते रहते हैं कबीर जी कहते हैं माला फेरेत जुग गया फिरा ना मन का फेर कर का मनका डारी रे मनका-मनका फेर अर्था...
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If we want to know english we have to go to english teacher if we want to know maths we have to go to maths teacher then when we want to know spiritual we have to go spiritual teacher spiritual knowledge is that knowledge when we know spiritual knowledge we not want any other knowledge because is spiritual knowledge is the king of ... all knowledge beacause when we know that pran is the king of indriyan then pran(aatma) knowledge is spiritual knowledge so spiritual knowledge is the king of all knowledge spiritual knowledge is self-realisation (aatma ka gyan) which is given only by Shri Satguru Mahahraj (brahmgyani) or samay ke satguru .
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Swami Vivekananda said, “Religion means realisation”. When people preserve this experience in their lives, it is dharma. In other words, dharma is not book-knowledge but the practical experience of the Self and this experience is called atma-gyan or self-realisation. Real dharma is self-realisation. So self-realisation is the soul of dharma. It is the basis of all religions; it is religion in its purest form.

Manav Dharam Sandesh

लोग प्राय शांति के लिए कहाँ-कहाँ नही जाते मंदिर गुरुद्वारे मस्जिद , तीरथ चार धाम परंतु शांति उन्हे शांति नही मिलती शांति अपने अंदर है सभी तीरथ अपने अंदर है कैलाश भी अपने अंदर है लेकिन उस शांति को पाने के लिए हमें सच्चे ज्ञान को जानना पड़ेगा और सच्चा ज्ञान सच्चे सतगुरु ही दे सकते हैं जब बच्चा माँ के गर्भ मैं था तब वह भजन करता था मालिक उसकी रक्षा करते थे उसने भगवान से वादा किया था की मुषे इस अंधकार से बाहर निकालो मैं तुम्हारा भजन करूँगा लेकिन मा के गर्भ से बाहर आने के बाद वह उस परम ज्ञान को भूल जाता है और रोने लगता है इसका मतलब यह है की बाहर दुख ही दुख है संसार नश्वर है और उस शांति को पाने के लिए वो कहाँ-कहाँ नही भटकता है केवल सच्चे सतगुरु ही उसे दुखों से बच्चने का उपाय बता सकते हैं परम ज्ञान दे सकते हैं जिससे वह इस भवसागर से बच कर परम गति को प्राप्त करता है अर्थात गुरुमहाराज वह साधन बताते हैं जिसके माध्यम से वह अपनी आत्मा को प्रमात्मा से जोड़ देता है अर्थात जीवन मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है गुरु का मतलब है गु मतलब अंधकार और रु मतलब प्रकाश अर्थात गुरुमहाराज ज...
God is light and even them there is no darkness

Manav Dharam

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Dharma is the practical experience of God. When a dumb man tastes candy, he experiences its sweetness, but he is incapable of describing it. Similarly, someone who has the divine experience forgets himself totally and is silent – this state of silence is ‘dharma’. So, dharma is the experience of the Self which is within each one of us. Swami Vivekananda said, “Religion means realisation”. When people preserve this experience in their lives, it is dharma. In other words, dharma is not book-knowledge but the practical experience of the Self and this experience is called atma-gyan or self-realisation. Real dharma is self-realisation.

Manav Dharam

Saints and sages have always taught that hidden inside us is the universe,but we don't know ourselves. That is why we wander everywhere in search of peace, but we don't find the peace that we are looking for.