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How to attain permanent peace Remember that so long as one’s mind attaches importance to an object and is tempted by it, nay, as long as its possession is supposed to be the sign of good fortune or God’s grace and its absence is taken as a misfortune and its necessity is felt, and so long as its possession is supposed to be a source of joy and fulfillment, one cannot be free from desire: one cannot attain disinterestedness or desirelessness. Nobody can attain ‘disinterestedness’ by merely repeating this word. One can attain it only when the objects desired appeared to be harmful and destructive of real happiness. Then the objects will appear unreal and of no significance. The real renunciation of desire is a function of the mind. It is not merely a matter of words. The mind is the seat of beneficent truthfulness. In order to attain disinterestedness, desirelessness, it is necessary to realize the transitoriness, imp...
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What is the Power which energizes you? What is the mystery behind the process of respiration? What is the vital energy on which everything depends? That life-energy isn't something which can be expressed verbally, yet it is the source of all languages. It is invisible, yet it makes us see. It cannot be known through logic or philosophy, yet the powers of reason and memory spring from it. It is the Self in every single being and experiencing it, realizing it, is our natural dharam, or Manav Dharam ('the dharam of mankind'). Manav Dharam is realizing one’s own innate potential and to evolving it to its ultimate levels. It means realising the common bond which encompasses the whole universe. It is universal, eternal, ever present and beyond matter and mind. Man is not merely a mechanism of body and mind but is Spirit in its truest sense. This is why it is said that we are one in spirit. In fact spirit is life and life is spirit. Manav Dharam therefore in...
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महापुरुषों का जन्म मनुष्य को सही मार्ग दिखाने के लिए होता है महापुरुषों का जन्म मनुष्य का जाति से हटकर वह पावन ज्ञान देना है जो सब में समाया हुआ है जल में , तल में , नभ में , आकाश , हाथी , चींटी , गाय , भैंस , घोड़ा , पक्षी सब में समाया हुआ है सच्चा ज्ञानी वह जो सब को एक समान देखता है सब से प्यार करता है , वह सब को बराबर समझता है , और परम प्रभु का निरंतर चिंतन करता रहता है , उसका मन एक बच्चे के समान पावन होता है जिस प्रकार एक बच्चे को देखिए कहीं बिठा दीजिए तो वह एक चिड़िया को देखकर ताली बजाता है , और साँप बिच्छू को भी देखकर खुश होता है और ताली बजता है क्योंकि उससे किसी की दुश्मनी नही है लेकिन जब जब वह बड़ा हो जाता है तो उसके मन में अहम का भाव आजाता है और फिर उसका मन दूषित हो जाता है , लेकिन जिस का मन पवित्र होता है तो वह आत्म ज्ञान के लायक होता है क्योंकि पवित्र मन उस परम ज्ञान को धारण कर सकता है अपित्र मन तो पहले से ही भरा हुआ है , अहंकार . क्रोध , लोभ , मौह इसलिए वह ज्ञान के काबिल नही है ज्ञान के काबिल होने के लिए हमें अपना मन पवित्र करना होगा साई बाबा कहते ह...
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एक बार एक आदमी एक साधु महाराज के पास गया और कहने लगा आप बहुत ज्ञानी हैं आपने बहुत से शिष्यों का मार्गदर्शन किया है क्या आप मेरा भी मार्गदर्शन करेंगे तो साधु महाराज जी कहते है बताओ तुम्हारी क्या इच्छा है तो वह आदमी कहता है में भगवान का दर्शन करना चाहता हूँ क्या आप करा देंगे तो साधु महाराज जी कहते हैं अवश्य क्रा देंगे तुम कल आना अगले दिन जब वह आदमी साधु महाराज के पास पहुँचा तो साधु महाराज जी कहते हैं चलो हमें आज एक पर्वत पर चढ़ना है तो कहा कि तुम एक थैला लेलो उस पर पाँच बड़े-बड़े पत्थर भर लो तो उस आदमी ने वैसा ही किया और तब चलने लगे जब थोड़ी चढ़ाई आई तो वह आदमी कहता है महाराज जी थैला बड़ा भारी हो रहा है अगर आप कहें तो क्या में एक पत्थर नीचे गिरा दूं तो साधु महाराज कहते हैं ठीक है तब उसने एक पत्थर गिरा दिया फिर और चढ़ाई आई और फिर दुबारा उसने वैसा ही कहा साधु महाराज जी से की थैला भारी हो रहा है क्या मैं एक पत्थर और गिरा दूं ऐसा करते-करते उसने सारे पत्थर गिरा दिये और वे पर्वत के शिखर पर पहुँच गये तब उसे साधु महाराज समझाने लगे की जब तक तुम्हारे मन में पाँच(क्राम , क्रोध , ल...
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वह शक्ति जो सारे संसार धारण किए हुए है वह शक्ति सारे जगत को पावन बनाने वाली है उसी शक्ति का ज्ञान अध्यात्म विद्या कहलाता है उसी शक्ति का ज्ञान राज विद्या कहलाता है उस शक्ति का ज्ञान जानने के लिए हमे सच्चे सतगुरु के पास जाना पढ़ता है उसके लिए हमारा मन पवित्र होना चाहिए जिस प्रकार मैले दर्पण में प्रतिबिंब नही दिख पता है उसी प्रकार से मैले (हृदय) रूपी दर्पण में भी प्रकाश रूपी प्रतिबिंब नही दिखाई पढ़ता है युग परिवर्तन के लिए हमे धरती को नही बदलना है आकाश को नही बदलना है , पानी को नही बदलना है बदलना है तो केवल मानव को बदलना है मानव को बदलने के लिए उसके मन को बदलना है जब मन बदलेगा तभी समाज बदलेगा और फिर देश बदलेगा और पूरा विश्व बदलेगा यही सच्चा युग परिवर्तन है इसके लिए हमे आत्मज्ञान को जानना होगा हमने पंखे बनाने की फेक्ट्री देखी होगी , टीवी बनाने की फेक्ट्री होगी , तेल बनाने की फेक्ट्री देखी होगी पर क्या हमने ऐसी फेक्ट्री देखी है जहाँ मानव बनता हो , सत्संग ही ऐसी जगह जहाँ दानव से मानव बनता है और मानव से महामानव बनता है इसलिए सत्संग सुना करें सत्संग बिना विवेक ...
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Substance of Gita Knowledge of God is the root of all vedas so god will be known , His creation was described in vedas but there was such elaborate detail that the reader , instead of coming to know god , became concerned with worldly knowledge and began to worship the wonders of his creation . In this way , peaople became confused and forgot God himself. Unable to discover God within His limitless creation, many great sages search for knowledge of him with in the vedas. However knowledge of God is not simply a matter of study , because this knowledge ----the essence of vedas----- is supremely subtle. Knowledge of God not obtainde without Satguru . Whenever the sages --the grace of Satguru-- gave Spiritual Knowledge to their disciples, they spoke the Upanishads, which are the substance of vedas. Those who were learned in the Upansihads wrote many books and many attempts , but still they couln't obtain knowledge -- the essence of all Upanishads-- has given by the Sa...